शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

ग़ज़ल



सख्त जां मोम की मानिंद पिघल जाते हैं
दिल के तंदूर में किरदार भी जल जाते हैं /
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसल जाते हैं /
किसी इंसान की शोहरत नहीं फन का मेयार
खोटे सिक्के भी तो बाज़ार में चल जाते हैं /
ठोकरे खाके न संभले तो हैं ये तेरा नसीब
लोग तो एक ही ठोकर में संभल जाते हैं /
ताज्केरा देखिये फरमाते हैं क्या अहले सुखन
महफिले शेर में हम लेके ग़ज़ल जाते हैं /
नशा दो आतिशा हो जाता हैं मेरा ये सुहैल
मय के साथ अश्क भी जब जाम में ढल जाते हैं //

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