बुधवार, 28 अप्रैल 2010

ग़ज़ल

जो न सुनता न बोलता हैं कभी /
ऐसे पत्थर से कुछ मिला हैं कभी /
हुस्न की जात से उमींदें वफ़ा ,
रेगज़ारों में गुल खिला हैं कभी
जिसकी बातों में रस टपकता हैं ,
ये बता उससे तू मिला हैं कभी /
फितरतें हुस्न कोई क्या समझे ,
वो कभी ज़हर हैं दवा हैं कभी /
ज़ुल्म का कोई एक नाम नहीं ,
कभी रावन ये , हुरमुला हैं कभी /
ये इबादत गुजार ये तो बता ,
सर झुका तो हैं दिल झुका हैं कभी /
सुनके ''मोहसिन सुहैल '' वो बोले ,
आपका नाम तो सुना हैं कभी //


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