सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ग़ज़ल

रंग लाएगा मेरे ग़म का फ़साना एक दिन
याद करके रोएगा मुझको जमाना एक दिन /

यु तो तुम ने आजमाई हैं वफ़ा हर एक दिन की
हो सके तो अब मुझे भी आज़माना एक दिन /

गाहे -गाहे मिलते रहने में भला दोनों का हैं
महंगा पड़ जाये न हर दिन आना जाना एक दिन /

शम्मा तो हमने जलाई थी उजालो के लिए
क्या खबर थी फूँक देगी आशियाना एक दिन /

आज जिन होठो पे हैं गैरों के नगमे ये '' सुहैल ''
गुनगुनायेंगे वो मेरा भी तराना एक दिन //

1 टिप्पणी:

  1. यु तो तुम ने आजमाई हैं वफ़ा हर एक दिन की
    हो सके तो अब मुझे भी आज़माना एक दिन
    .... बहुत खूब ... लाजवाब ... बेहतरीन गजल !!!

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