वो अपना हो के पराया लगाव ऐसा हो /
दिलो को जीत ले तेरा सुभाव ऐसा हो //
जुडो किसी से भी लेकिन जुडाव ऐसा हो /
के सर के साथ झुके दिल झुकाव ऐसा हो //
चलन को तेरे हमेशा जमाना याद रखें /
चले जंहा से तो कुछ चल चलाव ऐसा हो //
खिचे खिचे चले आंयें खिचे हो कितना ही /
तेरे खुलूस का उन पर दबाव ऐसा हो //
सियासी जंग में ए काश वो भी दिन आंए /
न कोई हारे न जीते चुनाव ऐसा हो //
सुझाव दे तो रहें हो सुझाव दो लेकिन /
सभी के हक में सही हो सुझाव ऐसा हो //
न दिल का करब हो जाहिर ''सुहैल '' आँखों से /
तुम्हारे चेहरे का कुछ हाव भाव ऐसा हो //
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
ग़ज़ल
ये मेरे वतन तेरा हर क़र्ज़ चूका देंगे
हम तेरी मोहब्बत में जां अपनी लुटा देंगे /
कारगिल हो बरलिक हो या और कोई सेक्टर
हर मोर्चे से अब उनको हम लोग भगा देंगे /
इस देश की मिट्टी से हमको भी मोहब्बत है
इस देश की मिट्टी में हम मिल के दिखा देंगे /
इस देश की सरहद पर जो आँख उठाएगा
कारगिल की तरह उसको सरहद से भगा देंगे /
ज़ज्बाते अकीदत है अशआर '' सुहैल '' अपने
हम मादरे भारत पर जां अपनी लुटा देंगे //
हम तेरी मोहब्बत में जां अपनी लुटा देंगे /
कारगिल हो बरलिक हो या और कोई सेक्टर
हर मोर्चे से अब उनको हम लोग भगा देंगे /
इस देश की मिट्टी से हमको भी मोहब्बत है
इस देश की मिट्टी में हम मिल के दिखा देंगे /
इस देश की सरहद पर जो आँख उठाएगा
कारगिल की तरह उसको सरहद से भगा देंगे /
ज़ज्बाते अकीदत है अशआर '' सुहैल '' अपने
हम मादरे भारत पर जां अपनी लुटा देंगे //
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
ग़ज़ल
जो न सुनता न बोलता हैं कभी /
ऐसे पत्थर से कुछ मिला हैं कभी /
हुस्न की जात से उमींदें वफ़ा ,
रेगज़ारों में गुल खिला हैं कभी
जिसकी बातों में रस टपकता हैं ,
ये बता उससे तू मिला हैं कभी /
फितरतें हुस्न कोई क्या समझे ,
वो कभी ज़हर हैं दवा हैं कभी /
ज़ुल्म का कोई एक नाम नहीं ,
कभी रावन ये , हुरमुला हैं कभी /
ये इबादत गुजार ये तो बता ,
सर झुका तो हैं दिल झुका हैं कभी /
सुनके ''मोहसिन सुहैल '' वो बोले ,
आपका नाम तो सुना हैं कभी //
ऐसे पत्थर से कुछ मिला हैं कभी /
हुस्न की जात से उमींदें वफ़ा ,
रेगज़ारों में गुल खिला हैं कभी
जिसकी बातों में रस टपकता हैं ,
ये बता उससे तू मिला हैं कभी /
फितरतें हुस्न कोई क्या समझे ,
वो कभी ज़हर हैं दवा हैं कभी /
ज़ुल्म का कोई एक नाम नहीं ,
कभी रावन ये , हुरमुला हैं कभी /
ये इबादत गुजार ये तो बता ,
सर झुका तो हैं दिल झुका हैं कभी /
सुनके ''मोहसिन सुहैल '' वो बोले ,
आपका नाम तो सुना हैं कभी //
मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
सुराज से टटोला डॉ रमन ने जनता का नब्ज़
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का ग्राम सुराज अभियान ग्रामीणों की समस्यायों को हल करने की दिशा में एक क्रन्तिकारी कदम हैं / डॉ रमन ने इस अभियान से न सिर्फ जनता की समस्यायों को तत्काल हल करने के निर्देश अधिकारीयों को दिए वरन नौकरशाही को तेज़ गर्मी में जनता के बीच जाने को मजबूर भी किया / कहने का मतलब साफ़ हैं मुख्यमंत्री पूरी सरकार को जनता के शिकायतों के लिए थोप दिया / वंही नक्सल प्रभावित इलाको में जाकर डॉ रमन ने आदिवासियों को विश्वास में लेने की प्रतिबद्धता भी दोहराई / चाहे वो दुर्दांत दंतेवाडा हो या बस्तर के अन्य माओवादियों के वर्चस्व वाले इलाके ,पुरे रेड कोरिडोर में सीएम के हेलीकाफ्टर ने कई चक्कर लगाये / वहीँ एक बात इस अभियान से और निकलकर आया की जनता की शिकायतों को अब डॉ रमन पूरी गंभीरता से लेते हैं साथ ही तत्काल निराकरण के आदेश भी देते हैं / मतलब साफ़ हैं डॉ रमन ने अपने तेवर बदले हैं उनका यह तेवर ऐसे ही नहीं बदला, दोबारा अपने बलबूते सत्ता पाकर वे और मजबूत हुए हैं /अब सही मायनों में ये कहा जा सकता हैं की डॉ रमन जो की आयुर्वेद के भी डॉ हैं जनता की नब्ज़ पकड़कर उन्हें हर बल दे रहें हैं //
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
ग़ज़ल
रंग लाएगा मेरे ग़म का फ़साना एक दिन
याद करके रोएगा मुझको जमाना एक दिन /
यु तो तुम ने आजमाई हैं वफ़ा हर एक दिन की
हो सके तो अब मुझे भी आज़माना एक दिन /
गाहे -गाहे मिलते रहने में भला दोनों का हैं
महंगा पड़ जाये न हर दिन आना जाना एक दिन /
शम्मा तो हमने जलाई थी उजालो के लिए
क्या खबर थी फूँक देगी आशियाना एक दिन /
आज जिन होठो पे हैं गैरों के नगमे ये '' सुहैल ''
गुनगुनायेंगे वो मेरा भी तराना एक दिन //
याद करके रोएगा मुझको जमाना एक दिन /
यु तो तुम ने आजमाई हैं वफ़ा हर एक दिन की
हो सके तो अब मुझे भी आज़माना एक दिन /
गाहे -गाहे मिलते रहने में भला दोनों का हैं
महंगा पड़ जाये न हर दिन आना जाना एक दिन /
शम्मा तो हमने जलाई थी उजालो के लिए
क्या खबर थी फूँक देगी आशियाना एक दिन /
आज जिन होठो पे हैं गैरों के नगमे ये '' सुहैल ''
गुनगुनायेंगे वो मेरा भी तराना एक दिन //
रविवार, 25 अप्रैल 2010
छत्तीसगढ़ के हम हैं छत्तीसगढ़ हमारा
सूबों में सबसे अच्छा छत्तीसगढ़ हमारा
हैं धान का कटोरा छत्तीसगढ़ हमारा /
फौलाद ,हीरा, पीतल , तांबा वो सोना चांदी
हर धातु का खजाना छत्तीसगढ़ हमारा /
हर कौम हर धरम को इसने पनाह दी हैं
दर्पण हैं एकता का छत्तीसगढ़ हमारा /
हिन्दू हो या मुसल्मा इसाई हो या सिख हो
सब का यही हैं नारा छत्तीसगढ़ हमारा /
किसकी मजाल हैं जो शोषण करें अब इसका
छत्तीसगढ़ के हम हैं छत्तीसगढ़ हमारा /
करता रहें तरक्की लब पे दुआ यही हैं
मेह्नात्कासों का सूबा छत्तीसगढ़ हमारा /
नगमा 'सुहैल' का ये गूंजे ज़माने भर में
हर आंख का हो तारा छत्तीसगढ़ हमारा //
हैं धान का कटोरा छत्तीसगढ़ हमारा /
फौलाद ,हीरा, पीतल , तांबा वो सोना चांदी
हर धातु का खजाना छत्तीसगढ़ हमारा /
हर कौम हर धरम को इसने पनाह दी हैं
दर्पण हैं एकता का छत्तीसगढ़ हमारा /
हिन्दू हो या मुसल्मा इसाई हो या सिख हो
सब का यही हैं नारा छत्तीसगढ़ हमारा /
किसकी मजाल हैं जो शोषण करें अब इसका
छत्तीसगढ़ के हम हैं छत्तीसगढ़ हमारा /
करता रहें तरक्की लब पे दुआ यही हैं
मेह्नात्कासों का सूबा छत्तीसगढ़ हमारा /
नगमा 'सुहैल' का ये गूंजे ज़माने भर में
हर आंख का हो तारा छत्तीसगढ़ हमारा //
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की
ताज़ीम करो इनकी हिदायत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की/
माँ बाप की ताज़ीम तो बच्चो पे हैं लाजिम
इस पर न करे जो भी अमल हैं वही जालिम
इस तरह के औलादों पे लानत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
अल्लाह ने कदमो में रखी माँ के हैं जन्नत
हैं फ़र्ज़ इसी तरह से इनकी भी इताअत
जिस तरह से फ़र्ज़ इताअत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
माँ बाप की इज्ज़त करो कहता हैं ये कुरआन
हैं इनको तव्वासुल से ही आबदिये इंसा
दुनिया में हमे भेजा ये हिकमत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
माँ बाप का ये लोगो कभी दिल न दुखाना
हर हुक्म पे माँ बाप के सर अपना झुकाना
ये हुक्मे पैगम्बर हैं मासियत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
हर घर की ये रौनक हैं हर आँगन की ये ज़ीनत
ये दौलते सफ्कत हैं फकत इनकी बदौलत
माँ बाप सलामत हैं ये रहमत खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
बतला दो हकीकत ये ज़माने को 'सुहैल ' आज
माँ बाप के सदके से हैं इंसान की मेराज
हम सब पे ये सबसे बड़ी रहमत खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की //
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की/
माँ बाप की ताज़ीम तो बच्चो पे हैं लाजिम
इस पर न करे जो भी अमल हैं वही जालिम
इस तरह के औलादों पे लानत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
अल्लाह ने कदमो में रखी माँ के हैं जन्नत
हैं फ़र्ज़ इसी तरह से इनकी भी इताअत
जिस तरह से फ़र्ज़ इताअत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
माँ बाप की इज्ज़त करो कहता हैं ये कुरआन
हैं इनको तव्वासुल से ही आबदिये इंसा
दुनिया में हमे भेजा ये हिकमत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
माँ बाप का ये लोगो कभी दिल न दुखाना
हर हुक्म पे माँ बाप के सर अपना झुकाना
ये हुक्मे पैगम्बर हैं मासियत हैं खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
हर घर की ये रौनक हैं हर आँगन की ये ज़ीनत
ये दौलते सफ्कत हैं फकत इनकी बदौलत
माँ बाप सलामत हैं ये रहमत खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की /
बतला दो हकीकत ये ज़माने को 'सुहैल ' आज
माँ बाप के सदके से हैं इंसान की मेराज
हम सब पे ये सबसे बड़ी रहमत खुदा की
माँ बाप का साया तो इनायत हैं खुदा की //
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
ग़ज़ल
सख्त जां मोम की मानिंद पिघल जाते हैं
दिल के तंदूर में किरदार भी जल जाते हैं /
मोड़ होता हैं जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यही आके फिसल जाते हैं /
किसी इंसान की शोहरत नहीं फन का मेयार
खोटे सिक्के भी तो बाज़ार में चल जाते हैं /
ठोकरे खाके न संभले तो हैं ये तेरा नसीब
लोग तो एक ही ठोकर में संभल जाते हैं /
ताज्केरा देखिये फरमाते हैं क्या अहले सुखन
महफिले शेर में हम लेके ग़ज़ल जाते हैं /
नशा दो आतिशा हो जाता हैं मेरा ये सुहैल
मय के साथ अश्क भी जब जाम में ढल जाते हैं //
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
क्रिकेट का बाज़ार
देश में इन दिनों क्रिकेट को लेकर एक नई बहस सी छिड गयी हैं / कभी देश का धर्म कहे जाने वाले इस खेल में अब वो बात नहीं रही , कुछ हद तक बिसमबिस ओवर के नए संस्करण याने टी ट्वेंटी ने इसे और बर्बाद किया हैं ,भारत में हो रहे इंडियन प्रिमिएर लीग में इस खेल को पूरी तरह बाजारीकरण कर दिया गया हैं साथ ही इस खेल के इस सालाना आयोजन में करोडो रुपयों की बारिस ने इसे धर्म से अलग कर वेश्या जैसा ही बना दिया हैं / दरअसल अंग्रजो की देन इस खेल को हम भारतीयों ने इसे कुछ ज्यादा आत्मसात कर लिया हैं / इसलिए इसके साइड एफ्फेक्ट के लिए हम लोग भी कम जिमेन्दार नहीं हैं / सब काम छोड़ टीवी के सामने बैठने को मजबूर करने वाले इस खेल ने हमे समय और पैसे के बर्बादी के आलावा कुछ नहीं दिया हैं / वही मीडिया ने जिस तरह से इसका महिमामंडन किया हैं वो देश की आम जनता को मुर्ख बनाने के लिए और अपने चैनल को सबसे आगे रखने का एक बड़ा खेल हैं / बात क्रिकेट की हो रही हैं इसलिए फिल्म सितारों और क्रिकेट के गासिप के बिना चर्चा अधूरी रहेगी दरअसल बड़े फिल्मकारों ने और विज्ञापनों ने भी क्रिकेट को मनोरंजन का सबसे बेहतर माध्यम बता कर जनता के जेब पर डाका डाला / मेरी जंहा तक सोच हैं अब समय आ गया हैं हम क्रिकेट के स्थान पर दुसरे खेलो पर भी नज़रे इनायत करे /भारत में ही कई खेल लुप्त हो रहे हैं उसे भी पैसे और आपके समय की जरुरत हैं जरा सोचीये ..............
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